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रविवार, 22 जून 2008

मानवता के दुश्मन

रात का सन्नाटा
अचानक
चीख पड़ती है मौतें
किसी ने हिन्दुओं को दोषी माना
तो किसी ने मुसलमानों को
किसी ने नहीं सोचा
न तो ये हिंदू थे, न मुसलमान
थे मानवता के दुश्मन।
***कृष्ण कुमार यादव***

1 टिप्पणी:

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

Manvata ke dushman kavita samaj ko uska chehara dikhati hai.Dharm ke nam par ho rahi kisi ki ladai ko uchit nahin tharaya ja sakta!!