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सोमवार, 14 सितंबर 2009

बदल रही है हिन्दी


आज हिन्दी भारत ही नहीं वरन् पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, इराक, इंडोनेशिया, इजरायल, ओमान, फिजी, इक्वाडोर, जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस, ग्रीस, ग्वाटेमाला, सउदी अरब, पेरू, रूस, कतर, म्यंमार, त्रिनिदाद-टोबैगो, यमन इत्यादि देशों में जहाँ लाखों अनिवासी भारतीय व हिन्दी -भाषी हैं, में भी बोली जाती है। चीन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, व जापान इत्यादि राष्ट्र जो कि विकसित राष्ट्र हैं की राष्ट्रभाषा अंग्रेजी नहीं वरन् उनकी खुद की मातृभाषा है। फिर भी ये दिनों-ब-दिन तरक्की के पायदान पर चढ़ रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अंग्रेजी के बिना विकास नहीं हो पाने की अवधारणा को इन विकसित देशों ने परे धकेल दिया है। निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषन को मूल......आज वाकई इस बात को अपनाने की जरूरत है। भूमण्डलीकरण एवं सूचना क्रांति के इस दौर में जहाँ एक ओर ‘सभ्यताओं का संघर्ष’ बढ़ा है, वहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नीतियों ने भी विकासशील व अविकसित राष्ट्रों की संस्कृतियों पर प्रहार करने की कोशिश की है। सूचना क्रांति व उदारीकरण द्वारा सारे विश्व के सिमट कर एक वैश्विक गाँव में तब्दील होने की अवधारणा में अपनी संस्कृति, भाषा, मान्यताओं, विविधताओं व संस्कारों को बचाकर रखना सबसे बड़ी जरूरत है। एक तरफ बहुराष्ट्रीय कम्पनियां जहाँ हमारी प्राचीन संपदाओं का पेटेंट कराने में जुटी हैं वहीं इनके ब्राण्ड-विज्ञापनों ने बच्चों व युवाओं की मनोस्थिति पर भी काफी प्रभाव डाला है, निश्चिततः इन सबसे बचने हेतु हमंे अपनी आदि भाषा संस्कृत व हिन्दी की तरफ उन्मुख होना होगा।



हम इस तथ्य को नक्कार नहीं सकते कि हाल ही में प्रकाशित आॅक्सफोर्ड अंग्रेजी शब्दकोष में हिन्दी के तमाम प्रचलित शब्दों, मसलन-आलू, अच्छा, अरे, देसी, फिल्मी, गोरा, चड्डी, यार, जंगली, धरना, गुण्डा, बदमाश, बिंदास, लहंगा, मसाला इत्यादि को स्थान दिया गया है तो दूसरी तरफ अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने राष्ट्रीय सुरक्षा भाषा कार्यक्रम के तहत अपने देशवासियों से हिन्दी, फारसी, अरबी, चीनी व रूसी भाषायें सीखने को कहा है। अमेरिका जो कि अपनी भाषा और अपनी पहचान के अलावा किसी को श्रेष्ठ नहीं मानता, हिन्दी सीखने में उसकी रूचि का प्रदर्शन निश्चिततः भारत के लिए गौरव की बात है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने स्पष्टतया घोषणा की कि-‘‘हिन्दी ऐसी विदेशी भाषा है, जिसे 21वीं सदी में राष्ट्रीय सुरक्षा और समृद्धि के लिए अमेरिका के नागरिकों को सीखनी चाहिए।’’ इसी क्रम में अमरीकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र की प्रतियां अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी और मलयालम में भी छपवाकर वितरित कीं। ओबामा के राष्ट्रपति चुनने के बाद सरकार की कार्यकारी शाखा में राजनैतिक पदों को भरने के लिए जो आवेदन पत्र तैयार किया गया उसमें 101 भाषाओं में भारत की 20 क्षेत्रीय भाषाओं को भी जगह दी गई। इनमें अवधी, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी, हरियाणवी, माघी व मराठी जैसी भाषायें भी शामिल हैं, जिन्हें अभी तक भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान तक नहीं मिल पाया है। ओबामा ने रमजान की मुबारकवाद उर्दू के साथ-साथ हिन्दी में भी दी। यही नहीं टेक्सास के स्कूलों में पहली बार ‘नमस्ते जी‘ नामक हिन्दी की पाठ्यपुस्तक को हाईस्कूल के छा़त्रों के लिए पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। 480 पेज की इस पुस्तक को भारतवंशी शिक्षक अरूण प्रकाश ने आठ सालों की मेहनत से तैयार की है। इसी प्रकार जब दुनिया भर में अंग्रेजी का डंका बज रहा हो, तब अंग्रेजी के गढ़ लंदन में बर्मिंघम स्थित मिडलैंड्स वल्र्ड टेªड फोरम के अध्यक्ष पीटर मैथ्यूज ने ब्रिटिश उद्यमियों, कर्मचारियों और छात्रों को हिंदी समेत कई अन्य भाषाएं सीखने की नसीहत दी है। यही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान हिन्दी का अकेला ऐसा सम्मान है जो किसी दूसरे देश की संसद, ब्रिटेन के हाउस आॅफ लॉर्ड्स में प्रदान किया जाता है। आज अंग्रेजी के दबदबे वाले ब्रिटेन से हिन्दी लेखकों का सबसे बड़ा दल विश्व हिन्दी सम्मेलन में अपने खर्च पर पहुँचता है।



निश्चिततः भूमण्डलीकरण के दौर में दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र, सर्वाधिक जनसंख्या वाले राष्ट्र और सबसे बडे़ उपभोक्ता बाजार कीे भाषा हिन्दी को नजर अंदाज करना अब सम्भव नहीं रहा। प्रतिष्ठित अंग्रेजी प्रकाशन समूहों ने हिन्दी में अपने प्रकाशन आरम्भ किए हैं तो बी0 बी0 सी, स्टार प्लस, सोनी, जी0 टी0 वी0, डिस्कवरी आदि अनेक चैनलों ने हिन्दी में अपने प्रसारण आरम्भ कर दिए हैं। हिन्दी फिल्म संगीत तथा विज्ञापनों की ओर नजर डालने पर हमें एक नई प्रकार की हिन्दी के दर्शन होते हैं। यहाँ तक कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विज्ञापनों में अब क्षेत्रीय बोलियों भोजपुरी इत्यादि का भी प्रयोग होने लगा है और विज्ञापनों के किरदार भी क्षेत्रीय वेश-भूषा व रंग-ढंग में नजर आते हैं। निश्चिततः मनोरंजन और समाचार उद्योग पर हिन्दी की मजबूत पकड़ ने इस भाषा में सम्प्रेषणीयता की नई शक्ति पैदा की है पर वक्त के साथ हिन्दी को वैश्विक भाषा के रूप में विकसित करने हेतु हमें भाषाई शुद्धता और कठोर व्याकरणिक अनुशासन का मोह छोड़ते हुए उसका नया विशिष्ट स्वरूप विकसित करना होगा अन्यथा यह भी संस्कृत की तरह विशिष्ट वर्ग तक ही सिमट जाएगी। हाल ही मे विदेश मंत्रालय ने इसी रणनीति के तहत प्रति वर्ष दस जनवरी को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ मनाने का निर्णय लिया है, जिसमें विदेशों मे स्थित भारतीय दूतावासों में इस दिन हिन्दी दिवस समारोह का आयोजन किया जाएगा। आगरा के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान में देश का प्रथम हिन्दी संग्रहालय तैयार किया जा रहा है, जिसमें हिन्दी विद्वानों की पाण्डुलिपियाँ, उनके पत्र और उनसे जुड़ी अन्य सामग्रियाँ रखी जायेंगी।



आज की हिन्दी वो नहीं रही..... बदलती परिस्थितियों में उसने अपने को परिवर्तित किया है। विज्ञान-प्रौद्योगिकी से लेकर तमाम विषयों पर हिन्दी की किताबें अब उपलब्ध हैं, क्षेत्रीय अखबारों का प्रचलन बढ़ा है, इण्टरनेट पर हिन्दी की बेबसाइटों में बढ़ोत्तरी हो रही है, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कई कम्पनियों ने हिन्दी भाषा में परियोजनाएं आरम्भ की हैं। सूचना क्रांति के दौर में कम्प्यूटर पर हिन्दी में कार्य संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के प्रतिष्ठान सी-डैक ने निःशुल्क हिन्दी साटवेयर जारी किया है, जिसमें अनेक सुविधाएं उपलब्ध हैं। माइक्रोसॉफ्ट ने आफिस हिन्दी के द्वारा भारतीयों के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग आसान कर दिया है। आई0 बी0 एम0 द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर में हिन्दी भाषा के 65,000 शब्दों को पहचानने की क्षमता है एवं हिन्दी और हिन्दुस्तानी अंग्रेजी के लिए आवाज पहचानने की प्रणाली का भी विकास किया गया है जो कि शब्दों को पहचान कर कम्प्यूटर लिपिबद्ध कर देती है। एच0 पी0 कम्प्यूटर्स एक ऐसी तकनीक का विकास करने में जुटी हुई है जो हाथ से लिखी हिन्दी लिखावट को पहचान कर कम्प्यूटर में आगे की कार्यवाही कर सके। चूँकि इण्टरनेट पर ज्यादातर सामग्री अंग्रेजी में है और अपने देश में मात्र 13 फीसदी लोगों की ही अंग्रेजी पर ठीक-ठाक पकड़ है। ऐसे में हाल ही में गूगल द्वारा कई भाषाओं में अनुवाद की सुविधा प्रदान करने से अंग्रेजी न जानने वाले भी अब इण्टरनेट के माध्यम से अपना काम आसानी से कर सकते हैं। अपनी तरह की इस अनोखी व पहली सेवा में हिन्दी, तमिल, तेलगू, कन्नड़ और मलयालम का अंग्रेजी में अनुवाद किया जा सकता है। यह सेवा इण्टरनेट पर www.google.in/translate_t टाइप कर हासिल की जा सकती है। आज हिन्दी के वेब पोर्टल समाचार, व्यापार, साहित्य, ज्योतिषी, सूचना प्रौद्योगिकी एवं तमाम जानकारियां सुलभ करा रहे हैं। यहाँ तक कि दक्षिण भारत में भी हिन्दी के प्रति दुराग्रह खत्म हो गया है। निश्चिततः इससे हिन्दी भाषा को एक नवीन प्रतिष्ठा मिली है।
- कृष्ण कुमार यादव

12 टिप्‍पणियां:

Raghav ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Raghav ने कहा…

महोदय
हिन्दी दिवस पर बहुत ही अच्छा लेख लिखा है आपने । सत्य है जो साहित्य के रस का मजा अपनी मातृ भाष्राा मे है वह किसी और भाष मे नही है ंहिन्दी शताब्दियो से हमारी बोलचाल की भाषा रही है जिसने हमे एकता के सूत्र मे बाधे रखा हैं । अगर देश की उन्न्ति और एकता चाहते है तो हमे अपनी हिन्दी की अक्षुणिता को बनाए रखना । इस सारगर्भित लेख के लिए आपको कोटि कोटि साधुवाद ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

नेपाल, बांग्लादेश, इराक, इंडोनेशिया, इजरायल, ओमान, फिजी, इक्वाडोर, जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस, ग्रीस, ग्वाटेमाला, सउदी अरब, पेरू, रूस, कतर, म्यंमार, त्रिनिदाद-टोबैगो, यमन इत्यादि देशों इन कि अपनी भाषा ही चलती है, इन्हे बेसाखी की जरुरत नही, हमारी तरह से.बिना अग्रेजी के इन मै से कई देशो ने बहुत तर्क्की कि है जेसे जर्मन, फ़्रांस, रुस बगेरा बगेरा
आप ने बहुत सुंदर लेख लिखा.
धन्यवाद

डॉ टी एस दराल ने कहा…

हिंदी पखवाडे के समापन पर आपके द्वारा लिखे गए सभी पोस्ट महत्तवपूर्ण जानकारी के श्रोत हैं. इस विषय में आपका प्रयास अत्यंत सराहनीय है. ये सच है की आज हिंदुस्तान और हिंदी की विश्व में धाक जम रही है.
लेकिन अपने ही तथाकथित आधुनिक और फैशनपरस्त लोगों को हिंदी को अंग्रेजी स्टाइल में बोलते देखकर दुःख होता है, विशेष तौर पर टी वी पर. ऐसा लगता है मनो हिंदी का मजाक उड़ाया जा रहा हो. अगर ठीक से बोली जाये तो हिंदी से ज्यादा कर्णप्रिय भाषा और कोई नहीं है.

Bhanwar Singh ने कहा…

Behad sargarbhit prastuti...Hindi-diwas ki badhai.

Unknown ने कहा…

बहुत बढ़िया शोधपरक आलेख लिखा है आपने! हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें!

Shyama ने कहा…

वाह भाई कृष्ण कुमार जी, आपकी लेखनी जब चलती है, खूब चलती है. हिंदी पर इस किश्तवार आलेख में आपने उसके उद्भव से लेकर वर्तमान तक बड़ा सुन्दर व शोधपरक रूप में प्रकाश डाला...साधुवाद !!

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

हम इस तथ्य को नक्कार नहीं सकते कि हाल ही में प्रकाशित आॅक्सफोर्ड अंग्रेजी शब्दकोष में हिन्दी के तमाम प्रचलित शब्दों, मसलन-आलू, अच्छा, अरे, देसी, फिल्मी, गोरा, चड्डी, यार, जंगली, धरना, गुण्डा, बदमाश, बिंदास, लहंगा, मसाला इत्यादि को स्थान दिया गया है तो दूसरी तरफ अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने राष्ट्रीय सुरक्षा भाषा कार्यक्रम के तहत अपने देशवासियों से हिन्दी, फारसी, अरबी, चीनी व रूसी भाषायें सीखने को कहा है।
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हिंदी अब उदार हो रही है व लोकप्रिय भी.

sandhyagupta ने कहा…

Aapke is lekh se kaphi tathyon ke bare me jaankari mili.

शरद कोकास ने कहा…

achchhaa gora included chaddee and lahangaa in dikshanaree good masaalaa इस आशावाद के लिये आपको साधुवाद

Prem Farukhabadi ने कहा…

आपका प्रयास अत्यंत सराहनीय है.बधाई !!

Amit Kumar Yadav ने कहा…

हिंदी बने राष्ट्र के भाल की बिंदी.....के.के. जी को इस लेख हेतु साधुवाद.