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रविवार, 14 मार्च 2010

सेलुलर जेल की गाथा

1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम ने अंग्रेजी सरकार को चैकन्ना कर दिया। व्यापार के बहाने भारत आये अंग्रेजों को भारतीय जनमानस द्वारा यह पहली कड़ी चुनौती थी जिसमें समाज के लगभग सभी वर्ग शामिल थे। जिस अंग्रेजी साम्राज्य के बारे में ब्रिटेन के मजदूर नेता अर्नेस्ट जोंस का दावा था कि-‘‘अंग्रेजी राज्य में सूरज कभी डूबता नहीं और खून कभी सूखता नहीं‘‘, उस दावे पर ग्रहण लगता नजर आया। अंग्रेजों को आभास हो चुका था कि उन्होंने युद्ध अपनी बहादुरी व रणकौशलता की वजह से नहीं बल्कि षडयंत्रों, जासूसों, गद्दारी और कुछेक भारतीय राजाओं के सहयोग से जीता था। अपनी इन कमजोरियों को छुपाने के लिए जहाँ अंग्रेजी इतिहासकारों ने 1857 के स्वाधीनता संग्राम को सैनिक गदर मात्र कहकर इसके प्रभाव को कम करने की कोशिश की, वहीं इस संग्राम को कुचलने के लिए भारतीयों को असहनीय व अस्मरणीय यातनायें दी गई। एक तरफ लोगों को फांसी दी गयी, पेड़ों पर समूहों में लटका कर मृत्यु दण्ड दिया गया व तोपों से बांधकर दागा गया वहीं जिन जीवित लोगों से अंग्रेजी सरकार को ज्यादा खतरा महसूस हुआ, उन्हें ऐसी जगह भेजा गया, जहाँ से जीवित वापस आने की बात तो दूर किसी अपने-पराये की खबर तक मिलने की कोई उम्मीद भी नहीं रख सकते थे और और यही काला पानी था। वो काला पानी जिसे आज सिर्फ महसूस किया जा सकता है कि दमन व यातना की प्रताड़ित परिस्थितियों के बीच किस प्रकार देश के तमाम नौजवानों ने अपनी जिन्दगी आजादी की आग में झांेक दी। अंग्रेजी हुकूमत ने काला पानी द्वारा इस आग को बुझाने की जबरदस्त कोशिश की पर वह तो चिंगारी से ज्वाला बनकर भड़क उठी। सेलुलर जेल, अण्डमान में कैद क्रांतिकारियों पर अंग्रेजों ने जमकर जुल्म ढाये पर जुल्म से निकली हर चीख ने भारत माँ की आजादी के इरादों को और बुलंद किया।

सेलुलर जेल के चलते ही अंडमान महत्वूपर्ण पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो चुका है। कहना अतिश्योक्ति न होगा कि अंडमान व सेलुलर जेल एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। यह एक अजीब इत्तफाक है कि अंडमान को भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई हेतु सबसे पहले चुना था पर बाद में इसे बदलकर रामेश्वरम (धनुषकोडि) कर दिया। उसके बाद से सभ्यता की हलचल अंडमान में नहीं दिखी। प्रकृति के आगोश में लिपटे इस खूबसूरत द्वीप के चारों तरफ विस्तृत समुद्री लहरों की अठखेलियाँ दीर्घ-काल तक लोगों की निगाहों से बची रहीं पर उनके इस अनछुएपन को न जाने किसकी नजर लग गयी कि ‘काला पानी‘ के रुप में कुख्यात हुई।

10 मार्च 2006 को अपना शताब्दी उत्सव मना चुका सेल्यूलर जेल आज आजादी के गवाह रूप में खड़ा है। अंग्रेजी सरकार को लगा था कि सुदूर निर्वासन व यातनाओं के बाद स्वाधीनता सेनानी स्वतः निष्क्रिय व खत्म हो जायेंगे पर यह निर्वासन व यातना भी सेनानियों की गतिविधियों को नहीं रोक पाया। वे तो पहले से ही जान हथेली पर लेकर निकले थे, फिर भय किस बात का। क्रान्तिकारियों का मनोबल तोड़ने और उनके उत्पीड़न हेतु सेल्यूलर जेल में तमाम रास्ते अख्तियार किये गये। स्वाधीनता सेनानियों और क्रातिकारियों को राजनैतिक बंदी मानने की बजाय उन्हें एक सामान्य कैदी माना गया। यही कारण था कि उन्हें लोहे के कोल्हू चलाने हेतु बैल की जगह जोता गया और प्रतिदिन 15 सेर तेल निकालने की सजा दी गयी। वीर सावरकर ने अपनी आत्मकथा में कालापानी के दिनों का वर्णन किया है, जिसे पढ़कर अहसास होता है कि आजादी के दीवाने गुलामी के दंश को खत्म करने हेतु किस हद तक यातनायें और कष्ट झेलते रहे। सेलुलर जेल की खिड़कियों से अभी भी जुल्म की दास्तां झलकती है। ऐसा लगता है मानो अभी फफक कर इसकी दीवालें रो पड़ेंगी।

सेल्यूलर जेल आजादी का एक ऐसा पवित्र तीर्थस्थल बन चुका है, जिसके बिना आजादी की हर इबारत अधूरी है। पर इस इतिहास को वर्तमान से जोड़ने की जरूरत है। सेलुलर जेल अपने अंदर जुल्मों की निशानी के साथ-साथ वीरता, अदम्य साहस, प्रतिरोध, बलिदान व त्याग की जिस गाथा को समेटे हुए है, उसे आज की युवा पीढ़ी के अंदर भी संचारित करने की आवश्यकता है। वाकई आज देश के हरेक व्यक्ति विशेषकर बच्चों को सेल्युलर जेल के दर्शन करने चाहिए ताकि आजादी की कीमत का अहसास उन्हें भी हो सके। देशभक्ति के जज्बे से भरे देशभक्तों ने सेल्युलर जेल की दीवारों पर अपने शब्द चित्र भी अंकित किये हैं। दूर-दूर से लोग इस पावन स्थल पर आजादी के दीवानों का स्मरण कर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं व इतिहास के गर्त में झांककर उन पलों को महसूस करते हैं जिनकी बदौलत आज हम आजादी के माहौल में सांस ले रहे हैं। बदलते वक्त के साथ सेल्युलर जेल इतिहास की चीज भले ही बन गया हो पर क्रान्तिकारियों के संघर्ष, बलिदान एवं यातनाओं का साक्षी यह स्थल हमेशा याद दिलाता रहेगा कि स्वतंत्रता यूँ ही नहीं मिली है, बल्कि इसके पीछे क्रान्तिकारियों के संघर्ष, त्याग व बलिदान की गाथा है।
(आकाशवाणी पोर्टब्लेयर से 14 मार्च को प्रसारित)

15 टिप्‍पणियां:

Shyama ने कहा…

Cellular Jail ke bare men mahatvapurna jankari...kafi gyanvardhan hua..abhar.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत कुछ नया जानने को मिला!

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

सेलुलर जेल के बारे में बहुत सुन्दर जानकारी..आभार.

Unknown ने कहा…

बहुत खूब भाई साहब. अंडमान गए ज्यादा दिन नहीं हुए पर प्रसारण आरंभ हो गया. यही तो प्रतिभा है..बधाई.

Unknown ने कहा…

बहुत खूब भाई साहब. अंडमान गए ज्यादा दिन नहीं हुए पर प्रसारण आरंभ हो गया. यही तो प्रतिभा है..बधाई.

Shahroz ने कहा…

"क्रांति-यज्ञ" में काला पानी पर आपका लेख पढने का सौभाग्य मिला था, अब पुन: संक्षिप्त में सारगर्भित आलेख. कोटिश : धन्यवाद.

Bhanwar Singh ने कहा…

वहां रेडियो से प्रसारण. यहाँ ब्लॉग से सीधा प्रसारण. अंडमानवासियों के साथ-साथ हमें भी लाभ.

बेनामी ने कहा…

बदलते वक्त के साथ सेल्युलर जेल इतिहास की चीज भले ही बन गया हो पर क्रान्तिकारियों के संघर्ष, बलिदान एवं यातनाओं का साक्षी यह स्थल हमेशा याद दिलाता रहेगा कि स्वतंत्रता यूँ ही नहीं मिली है, बल्कि इसके पीछे क्रान्तिकारियों के संघर्ष, त्याग व बलिदान की गाथा है।
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जज्बा पैदा करती हैं ये पंक्तियाँ. हम लोगों के साथ इस लेख को शेयर करने के लिए आभार.

Akanksha Yadav ने कहा…

एकदम सही लिखा आपने कि- सेल्यूलर जेल आजादी का एक ऐसा पवित्र तीर्थस्थल बन चुका है, जिसके बिना आजादी की हर इबारत अधूरी है।

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

आकांक्षा जी के ब्लॉग पर सेलुलर जेल के अद्भुत चित्र देखे थे, अब ये अद्भुत जानकारी. वाकई सेलुलर जेल में सेनानियों द्वारा काटे गए दिन बेहद क्रूरतम थे. ऐसे लोगों ने ही आजादी कि इबारत लिखी.

S R Bharti ने कहा…

यह एक अजीब इत्तफाक है कि अंडमान को भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई हेतु सबसे पहले चुना था पर बाद में इसे बदलकर रामेश्वरम (धनुषकोडि) कर दिया। ..तभी कहा जाता है कि अंडमान का नाम हनुमान जी के नाम पर पड़ा. सेलुलर जेल पर नई-नई जानकारियां. धन्यवाद.

मन-मयूर ने कहा…

बढ़िया ज्ञानार्जन. इतिहास की किताबों में पढ़ा था, पर आपने इसे रोचक रूप में प्रस्तुत किया है.

मन-मयूर ने कहा…

बढ़िया ज्ञानार्जन. इतिहास की किताबों में पढ़ा था, पर आपने इसे रोचक रूप में प्रस्तुत किया है.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

मुझे लगता है की हर किसी को इस पवित्र तीर्थ-स्थल का एक बार दर्शन अवश्य करना चाहिए.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

प्रकृति के आगोश में लिपटे इस खूबसूरत द्वीप के चारों तरफ विस्तृत समुद्री लहरों की अठखेलियाँ दीर्घ-काल तक लोगों की निगाहों से बची रहीं पर उनके इस अनछुएपन को न जाने किसकी नजर लग गयी कि ‘काला पानी‘ के रुप में कुख्यात हुई...बेहद सटीक पंक्तियाँ. दिल को छूती हैं. सारगर्भित जानकारी भरी पोस्ट, बधाई.