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बुधवार, 28 नवंबर 2012

दाम्पत्य जीवन के आठ वर्ष

आज 28 नवम्बर को हमारी (कृष्ण कुमार यादव-आकांक्षा यादव) शादी की 8वीं सालगिरह है। दाम्पत्य के साथ-साथ साहित्य और ब्लागिंग में भी सम्मिलित सृजनशीलता की युगलबंदी करते हुए जीवन के इस सफ़र में दिन, महीने और फिर साल कितनी तेजी से पंख लगाकर उड़ते चले गए, पता ही नहीं चला। आज हम वैवाहिक जीवन के 8 वर्ष पूरे करके 9वें वर्ष में प्रवेश करेंगें। वैसे भी 9 हमारा पसंदीदा नंबर है।

!! जीवन के इस सफ़र में आप सभी की शुभकामनाओं और स्नेह के लिए आभार !!

                                       रविकर जी की यह खूबसूरत पंक्तियाँ

वर्ष-गाँठ आई सुखद, *आठ-गाँठ-कुम्मैद |
मस्त रहें आठो पहर, इक दूजे में कैद |

इक दूजे में कैद, किन्तु दुनिया भी घूमें |
बने बच्चियां श्रेष्ठ, पताका नभ को चूमे |

नौ रविकर कर नौमि, हुआ है तन मन गदगद |
शुभकामना असीम, वर्ष-गाँठ आई सुखद ||


*सर्व-गुण-संपन्न |

रविवार, 25 नवंबर 2012

आपका ब्लॉग और भी कहीं पढ़ा जा रहा है...

न्यू मीडिया के रूप में ब्लागिंग ने कई रंग भरे हैं। प्रिंट-मीडिया से लेकर इलेक्ट्रानिक-मीडिया तक ब्लॉग कौतुहल का विषय बने हुए हैं। बलाग्ज़ पर प्रकाशित पोस्ट तमाम पत्र-पत्रिकाओं में धड़ल्ले से प्रकाशित हो रही हैं। इनमें प्रतिष्ठित से लेकर छोटे कस्बों तक से निकलने वाली पत्र-पत्रिकाएं शामिल हैं। कई बार तो पत्र-पत्रिकाएं ब्लोग्ज़ की पोस्ट को प्रकाशित करती हैं, पर उन्हें सूचित भी नहीं करतीं, शुक्र मात्र इतना है कि ब्लोगज के यूआरएल एड्रेस और लेखक का नाम प्रकाशित करती हैं। पर कई बार तो ऐसा भी नहीं होता।
 
फ़िलहाल शुक्रगुजार हूँ हिसार, हरियाणा में रह रहे वरिष्ठ साहित्यकार डा. राम निवास 'मानव' जी का जिन्होंने मुझे पिछले दिनों हिसार से प्रकाशित हो रहे दैनिक अख़बार 'नभ-छोर' की दर्जन भर से ज्यादा प्रतियाँ भेजीं, इसमें सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित आलेख हिंदी-ब्लॉगों से ही लिए गए हैं। एक अन्य स्तम्भ 'ब्लॉग जगत से' में हर रोज किसी-न-किसी ब्लॉग की पोस्ट प्रकाशित हो रही हैं। इसमें आपका भी ब्लॉग शामिल हो सकता है।
 
 
दुर्भाग्य यह है कि इन सबको सहेजेने वाला कोई ब्लॉग या वेबसाइट भी नहीं है, जो इन्हें सहेजते भी हैं उनकी अपनी सीमाएं हैं। खैर, इसी बहाने हिंदी के ब्लोगज उन ग्रामीण क्षेत्रों में भी खूब पढ़े जा रहे हैं, जहाँ नेट कनेक्टिविटी का भी अभाव हो। सो आप निश्चिन्त रहिये, आपका ब्लॉग और भी कहीं पढ़ा जा रहा है।
 
 

रविवार, 11 नवंबर 2012

'आतिशबाजी' की बजाय दीपावली को 'सामाजिक सरोकारों' से जोड़ने की ज़रूरत


भारतीय उत्सवों को लोकरस और लोकानंद का मेल कहा गया है। भूमण्डलीकरण एवं उपभोक्तावाद के बढ़ते दायरों के बीच इस रस और आनंद में डूबा भारतीय जन-मानस आज भी न तो बड़े-बड़े माल और क्लबों में मनने वाले फेस्ट से चहकार भरता है और न ही किसी कम्पनी के सेल आफर को लेकर आन्तरिक उल्लास से भरता है। त्यौहार सामाजिक सदाशयता के परिचायक हैं न कि हैसियत दर्शाने के। त्यौहार हमें जीवन के राग-द्वेष से ऊपर उठाकर एक आदर्श समाज की स्थापना में मदद करते हैं। कोस-कोस पर बदले भाषा, कोस-कोस पर बदले बानी-वाले भारतीय समाज में एक ही त्यौहार को मनाने के अन्दाज में स्थान परिवर्तन के साथ कुछ न कुछ परिवर्तन दिख ही जाता है। वक्त के साथ दीपावली का स्वरूप भी बदला है।
 
दीपावली का त्यौहार इस बात का प्रतीक है कि हम इन दीपों से निकलने वाली ज्योति से सिर्फ अपना घर ही रोशन न करें वरन् इस रोशनी में अपने हृदय को भी आलोकित करें और समाज को राह दिखाएं। दीपक सिर्फ दीपावली का ही प्रतीक नही वरन् भारतीय सभ्यता में इसके प्रकाश को इतना पवित्र माना गया है कि मांगलिक कार्यों से लेकर भगवान की आरती तक इसका प्रयोग अनिवार्य है। यहाँ तक कि परिवार में किसी की गंभीर अस्वस्थता अथवा मरणासन्न स्थिति होने पर दीपक बुझ जाने को अपशकुन भी माना जाता है।
 
 अगर हम इतिहास के गर्भ में झांककर देखें तो सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में पकी हुई मिट्टी के दीपक प्राप्त हुए हैं और मोहनज़ोदड़ो की खुदाई में प्राप्त भवनों में दीपकों को रखने हेतु ताख बनाए गए थे व मुख्य द्वार को प्रकाशित करने हेतु आलों की श्रृंखला थी। इसमें कोई शक नहीं कि दीपकों का आविर्भाव सभ्यता के साथ ही हो चुका था, पर दीपावली का जन-जीवन में पर्व रूप में आरम्भ श्री राम के अयोध्या आगमन से ही हुआ।
 
 दीपावली पर्व के पीछे मान्यता है कि रावण- वध के बीस दिन पश्चात भगवान राम अनुज लक्ष्मण व पत्नी सीता के साथ चौदह  वर्षों के वनवास पश्चात अयोध्या वापस लौटे थे। जिस दिन श्री राम अयोध्या लौटे, उस रात्रि कार्तिक मास की अमावस्या थी अर्थात आकाश में चाँद बिल्कुल नहीं दिखाई देता था। ऐसे माहौल में नगरवासियों ने भगवान राम के स्वागत में पूरी अयोध्या को दीपों के प्रकाश से जगमग करके मानो धरती पर ही सितारों को उतार दिया। तभी से दीपावली का त्यौहार मनाने की परम्परा चली आ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज भी दीपावली के दिन भगवान राम, लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ अपनी वनवास स्थली चित्रकूट में विचरण कर श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। यही कारण है कि दीपावली के दिन लाखों श्रद्धालु चित्रकूट में मंदाकिनी नदी में डुबकी लगाकर कामद्गिरि की परिक्रमा करते हैं और दीप दान करते हैं। दीपावली के संबंध में एक प्रसिद्ध मान्यतानुसार मूलतः यह यक्षों का उत्सव है। दीपावली की रात्रि को यक्ष अपने राजा कुबेर के साथ हास-विलास में बिताते व अपनी यक्षिणियों के साथ आमोद-प्रमोद करते। दीपावली पर रंग- बिरंगी आतिशबाजी, लजीज पकवान एवं मनोरंजन के जो विविध कार्यक्रम होते हैं, वे यक्षों की ही देन हैं।
 
पारम्परिक सरसों के तेल की दीपमालायें न सिर्फ प्रकाश व उल्लास का प्रतीक होती हैं बल्कि उनकी टिमटिमाती रोशनी के मोह में घरों के आसपास के तमाम कीट-पतंगे भी मर जाते हैं, जिससे बीमारियों पर अंकुश लगता है। इसके अलावा देशी घी और सरसों के तेल के दीपकों का जलाया जाना वातावरण के लिए वैसे ही उत्तम है जैसे जड़ी-बूटियां युक्त हवन सामग्री से किया गया हवन। पर वर्तमान में जिस प्रकार बल्बों और झालरों का प्रचलन बढ़ रहा है, वह दीपावली के परम्परागत स्वरूप के ठीक उलटा है। आज दीपावली, दीयों का कम पटाखों और आतिशबाजी का त्यौहार ज्यादा हो गया है।
 
भारतीय संस्कृति दीये को प्रतिबिंबित करती है, आतिशबाजी चीनी-संस्कृति की देन है। पटाखे फोड़कर, आतिशबाजी कर व जोर से लाउडस्पीकर बजाकर हम पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। गौरतलब है कि आतिशबाजी से निकलने वाले धुएं में कैडमियम, बेरियम, रुबिडियम, स्ट्रान्सियम और डाईआक्सिन जैसे जहरीले तत्व शामिल होते हैं। इसके धुंए में कार्बनडाईआक्साइड के अलावा कार्बनमोनोआक्साइड, सल्फर डाईआक्साइड जैसी विषैली गैसें शामिल होती हैं। वास्तव में देखें तो आतिशबाजी जल, वायु और ध्वनि तीनों प्रदूषणों का कारण है और इसके चलते इनका जहरीला असर लम्बे समय तक बना रहता है। आतिशबाजी के चलते आँखों, फेफड़ों, शवांस, त्वचा के रोगों में भी इजाफा होने की सम्भावना होती है। एक ओर कोई व्यक्ति बीमार है तो दूसरी ओर अन्य लोग बिना उसके स्वास्थ्य की परवाह किए लाउडस्पीकर बजाए जा रहे हैं, एक व्यक्ति समाज में अपनी हैसियत दिखाने हेतु हजारों-लाखों रुपये की आतिशबाजी कर रहा है तो दूसरी ओर न जाने कितने लोग सिर्फ एक समय का खाना खाकर पूरा दिन बिता देते हैं।
 
एक अनुमानानुसार हर साल दीपावली की रात पूरे देश में करीब पाँच हजार करोड़ रूपये के पटाखे जला दिए जाते हैं और करोड़ों रूपये जुए में लुटा दिए जाते हैं। जिस तरह से आतिशबाजी और पटाखे तैयार करने में बालश्रम का इस्तेमाल होता है, वह भी चिंतनीय है। क्या हमारी अंतश्चेतना यह नहीं कहती कि करोड़ों रुपये के पटाखे छोड़ने और आतिशबाजी की बजाय भूखे-नंगे लोगों हेतु कुछ प्रबन्ध किए जायें? हम दीपावली को 'इको फ्रैंडली' बनाते हुए इसे सामाजिक सरोकारों से क्यों नहीं जोड़ सकते। त्यौहार के नाम पर सब छूट है के बहाने अपने को शराब के नशे में डुबोकर मारपीट व अभद्रता करना कहाँ तक जायज है? निश्चिततः इन सभी प्रश्नों का जवाब अगर समय रहते नहीं दिया गया तो अगली पीढ़ियाँ शायद त्यौहारों की वास्तविक परिभाषा ही भूल जायें।

आज जरुरत 'आतिशबाजी' की बजाय दीपावली को 'सामाजिक सरोकारों' से जोड़ने की है। यदि इस शुभ-पर्व पर हम किसी के जीवन में खुशियों का उजियारा फैला सके तो उससे बड़ी ख़ुशी और नहीं होगी !!
 
- कृष्ण कुमार यादव

शनिवार, 3 नवंबर 2012

कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव को उ.प्र. के मुख्यमंत्री द्वारा अवध सम्मान : झलकियाँ

(उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने 1 नवम्बर, 2012 को हमें (कृष्ण कुमार यादव-आकांक्षा यादव) ‘न्यू मीडिया एवं ब्लागिंग’ में उत्कृष्टता के लिए एक भव्य कार्यक्रम में ‘अवध सम्मान’ से सम्मानित किया. जी न्यूज़ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का आयोजन ताज होटल, लखनऊ में किया गया था, जिसमें विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित किया गया. प्रस्तुत हैं कार्यक्रम के यादगार पल)

(उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव द्वारा 1 नवम्बर, 2012 को कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव को 'न्यू मीडिया एवं ब्लागिंग' में उत्कृष्टता के लिए युगल रूप में 'अवध सम्मान' से सम्मानित किया गया.साथ में परिलक्षित हैं उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष श्री माता प्रसाद पाण्डेय और जी-न्यूज उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के संपादक वाशिन्द्र मिश्र  )
                          (सम्मान से पहले  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव से मुलाकात)

('अवध सम्मान' प्राप्त करने के बाद कृष्ण कुमार यादव का संबोधन)


('अवध सम्मान' प्राप्त करने के बाद आकांक्षा यादव का संबोधन)
                                   (उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव से गुफ्तगू के पल)

('अवध सम्मान' के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव, चर्चित लोकगायिका मालिनी अवस्थी और कृष्ण कुमार यादव.)

(उ.प्र. विधानसभा अध्यक्ष श्री माता प्रसाद पाण्डेय जी के साथ : कृष्ण कुमार यादव, आकांक्षा यादव, बेटियां अक्षिता (पाखी)-अपूर्वा और प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य के. ए. दुबे पद्मेश.)
('अवध सम्मान' प्राप्त करने के बाद कृष्ण कुमार यादव और कानपुर में रह रहे प्रसिद्द ज्योतिषाचार्य के. ए. दुबे पद्मेश)
('अवध सम्मान' के दौरान उत्तर प्रदेश से विधायक सुश्री अनुप्रिया पटेल से रूबरू.कानपुर में रहते हुए उनसे कुछेक कार्यक्रमों में मुलाकात हुई थीं, पर विधानसभा सदस्य बनने के बाद पहली बार मुलाकात हुई)
 
 
('अवध सम्मान' के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव साथ ग्रुप फोटो)

('अवध सम्मान' प्राप्त करने के बाद प्रसन्नचित्त परिवार)

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

उ.प्र. के मुख्यमंत्री द्वारा कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव 'ब्लागिंग' में उत्कृष्ट कार्य हेतु 'अवध सम्मान' से सम्मानित


जीवन में कुछ करने की चाह हो तो रास्ते खुद-ब-खुद बन जाते हैं। हिन्दी-ब्लागिंग के क्षेत्र में ऐसा ही रास्ता अखि़्तयार किया दम्पति कृष्ण कुमार यादव व आकांक्षा यादव ने। उनके इस जूनून के कारण ही आज हिंदी ब्लागिंग को आधिकारिक तौर पर भी विधा के रूप में मान्यता मिलने लगी है. इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने 1 नवम्बर, 2012 को इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव और उनकी पत्नी आकांक्षा यादव को ‘न्यू मीडिया एवं ब्लागिंग’ में उत्कृष्टता के लिए एक भव्य कार्यक्रम में ‘अवध सम्मान’ से सम्मानित किया गया. जी न्यूज़ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का आयोजन ताज होटल, लखनऊ में किया गया था, जिसमें विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित किया गया, पर यह पहली बार हुआ जब किसी दम्पति को युगल रूप में यह प्रतिष्ठित सम्मान दिया गया. ब्लागर दम्पति को सम्मानित करते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जहाँ न्यू मीडिया के रूप में ब्लागिंग की सराहना की, वहीँ कृष्ण कुमार यादव ने अपने संबोधन में उनसे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा दिए जा रहे सम्मानों में ‘ब्लागिंग’ को भी शामिल करने का अनुरोध किया. आकांक्षा यादव ने न्यू मीडिया और ब्लागिंग के माध्यम से भ्रूण-हत्या, नारी-उत्पीडन जैसे मुद्दों के प्रति सचेत करने की बात कही. अन्य सम्मानित लोगों में वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी, चर्चित लोकगायिका मालिनी अवस्थी, ज्योतिषाचार्य पं. के. ए. दुबे पद्मेश, वरिष्ठ आई.एस. अधिकारी जय शंकर श्रीवास्तव इत्यादि प्रमुख रहे.

जीवन में एक-दूसरे का साथ निभाने की कसमें खा चुके कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव, साहित्य और ब्लागिंग में भी हमजोली बनकर उभरे हैं. कृष्ण कुमार यादव ब्लागिंग और हिन्दी-साहित्य में एक चर्चित नाम हैं, जिनकी 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । उनके जीवन पर एक पुस्तक ’बढ़ते चरण शिखर की ओर’ भी प्रकाशित हो चुकी है। आकांक्षा यादव भी नारी-सशक्तीकरण को लेकर प्रखरता से लिखती हैं और उनकी दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव ने वर्ष 2008 में ब्लाग जगत में कदम रखा और 5 साल के भीतर ही सपरिवार विभिन्न विषयों पर आधारित दसियों ब्लाग का संचालन-सम्पादन करके कई लोगों को ब्लागिंग की तरफ प्रवृत्त किया और अपनी साहित्यिक रचनाधर्मिता के साथ-साथ ब्लागिंग को भी नये आयाम दिये। कृष्ण कुमार यादव का ब्लॉग ‘शब्द-सृजन की ओर’ (http://www.kkyadav.blogspot.in/) जहाँ उनकी साहित्यिक रचनात्मकता और अन्य तमाम गतिविधियों से रूबरू करता है, वहीँ ‘डाकिया डाक लाया’ (http://dakbabu.blogspot.in/) के माध्यम से वे डाक-सेवाओं के अनूठे पहलुओं और अन्य तमाम जानकारियों को सहेजते हैं. आकांक्षा यादव अपने व्यक्तिगत ब्लॉग ‘शब्द-शिखर’ (http://shabdshikhar.blogspot.in/) पर साहित्यिक रचनाओं के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों और विशेषत: नारी-सशक्तिकरण को लेकर काफी मुखर हैं. इस दम्पति के ब्लागों को सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भरपूर सराहना मिली। कृष्ण कुमार यादव के ब्लाग ’डाकिया डाक लाया’ को 98 देशों, ’शब्द सृजन की ओर’ को 75 देशों, आकांक्षा यादव के ब्लाग ’शब्द शिखर’ को 68 देशों में देखा-पढ़ा जा चुका है. सबसे रोचक तथ्य यह है कि यादव दम्पति ने अभी से अपनी सुपुत्री अक्षिता (पाखी) में भी ब्लागिंग को लेकर जूनून पैदा कर दिया है. पिछले वर्ष ब्लागिंग हेतु भारत सरकार द्वारा ’’राष्ट्रीय बाल पुरस्कार’’ से सम्मानित अक्षिता (पाखी) का ब्लाग ’पाखी की दुनिया’ (http://pakhi-akshita.blogspot.in/) बच्चों के साथ-साथ बड़ों में भी काफी लोकप्रिय है और इसे 98 देशों में देखा-पढ़ा जा चुका है। इसके अलावा इस ब्लागर दम्पति द्वारा ‘उत्सव के रंग’, ‘बाल-दुनिया’, ‘सप्तरंगी प्रेम’ इत्यादि ब्लॉगों का भी सञ्चालन किया जाता है.

इस अवसर पर उ.प्र. विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय, रीता बहुगुणा जोशी, प्रमोद तिवारी, केबिनेट मंत्री दुर्गा प्रसाद यादव, अनुप्रिया पटेल, मेयर दिनेश शर्मा सहित मंत्रिपरिषद के कई सदस्य, विधायक, कार्पोरेट और मीडिया से जुडी हस्तियाँ, प्रशासनिक अधिकारी, साहित्यकार, पत्रकार, कलाकर्मी व खिलाडी इत्यादि उपस्थित रहे. आभार ज्ञापन जी न्यूज उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के संपादक वाशिन्द्र मिश्र ने किया.

-डा. विनय कुमार शर्मा
प्रधान संपादक-संचार बुलेटिन (अंतराष्ट्रीय शोध जर्नल)
448/119/76, कल्याणपुरी, ठाकुरगंज, चैक, लखनऊ-226003

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

कृष्ण कुमार यादव के हाइकु

आधुनिकता
क्षीण हो रहे मूल्य
चकाचौंध में।


टूटते रिश्ते
सूखती संवेदना
कैसे बचाएं।


संवेदनाएं
लहुलुहान होती
समय कैसा।


सत्य-असत्य
के पैमाने बदले
छाई बुराई।


खलनायक
नेता या अभिनेता
खामोश सब।


अहं में चूर
मानव शर्मसार
अब तो जाग।


-कृष्ण कुमार यादव