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रविवार, 10 फ़रवरी 2013

प्रिया आ ! : अथर्ववेद में समाहित दो प्रेम गीत

वेलेण्टाइन डे का असर अभी से दिखने लगा है. चारों तरफ प्यार की धूम मची है. अब तो यह पूरा व्यवसाय हो गया है. हर कोई इसे अपने ढंग से यादगार बनाना चाह रहा है. फ़िलहाल प्यार की इस फिजा में वसंत के अहसास के बीच वेलेण्टाइन डे पर अथर्ववेद में समाहित दो प्रेम गीतों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है-

प्रिया आ !
मत दूर जा
लिपट मेरी देह से
लता लतरती ज्यों पेड़ से
मेरे तन के तने पर
तू आ टिक जा
अंक लगा मुझे
कभी न दूर जा
पंछी के पंख कतर
ज़मीं पर उतार लाते ज्यों
छेदन करता मैं तेरे दिल का
प्रिया आ, मत दूर जा।
धरती और अंबर को
सूरज ढक लेता ज्यों
तुझे अपनी बीज भूमि बना
आच्छादित कर लूंगा तुरंत
प्रिया आ, मन में छा
कभी न दूर जा
आ प्रिया!


हे अश्विन!
ज्यों घोड़ा दौड़ता आता
प्रिया-चित्त आए मेरी
ओर
ज्यों घुड़सवार कस
लगाम
रखता अश्व वश में
रहे तेरा मन
मेरे वश में
करे अनुकरण सर्वदा
मैं खींचता तेरा चित्त
ज्यों राजअश्व खींचता
घुड़सवार
अथित करूं तेरा हृदय
आंधी में भ्रमित तिनके जैसा
कोमल स्पर्श से कर
उबटन तन पर
मधुर औषधियों से
जो बना
थाम लूं मैं हाथ
भाग्य का कस के।

 
( आकांक्षा जी के ब्लॉग 'शब्द-शिखर' से )

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वाह..बहुत सुन्दर..