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शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

अब आपका स्मार्टफोन बताएगा आपकी बीमारी

स्मार्टफोन अब वाकई स्मार्ट हो गया है। अमेरिका में शोधकर्ताओं ने एक ऐसा स्मार्टफोन विकसित किया है, जो किसी बायो सेंसर की तरह शरीर में विषाक्त पदार्थो का पता लगाएगा।

स्मार्टफोन में लगा कैमरा शरीर में मौजूद बैक्टीरिया, वायरस और दूसरे मॉलिक्यूल्स का पता लगा सकता है। यह तकनीक चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत ही सस्ती और आसान डायग्नोसिस प्रक्रिया उपलब्ध करा सकती है। स्मार्टफोन का ढांचा और इसमें इस्तेमाल की गई एप्लीकेशन बायो सेंसिटिव क्षमता वाली हैं, जिसे फोन के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम [जीपीएस] से जोड़ दिया गया है। इससे बैक्टीरिया के फैलने का नक्शा मिल जाता है। बायो सेंसर के बीच एक फोटोनिक क्रिस्टल लगा है।

यह फोटोनिक क्रिस्टल एक तरह का शीशा है, जो प्रकाश की एक तरंगदै‌र्ध्य को अपने में से गुजरने देता है। जैसे ही प्रोटीन, कोशिका, बैक्टीरिया या डीएनए जैसे जैविक तत्व फोनेटिक क्रिस्टल से चिपकते हैं, तो इसमें से निकलने वाली छोटी तरंगदै‌र्ध्य लंबी हो जाती है। इस पूरे परीक्षण में कुछ मिनटों का समय लगेगा। यह अध्ययन पिछले साल 'लैब ऑन ए चिप' नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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गुरुवार, 23 अक्तूबर 2014

मानव हृदय को आलोकित करने वाला पर्व है दीपावली

दीपावली सिर्फ घरों को जगमगाने वाला पर्व नहीं है बल्कि यह मानव हृदय को आलोकित करने वाला पर्व भी है। हमारी परम्परा एक तरफ दीपावली के दिन घरों को साफ-सुथरा कर गणेश-लक्ष्मी के रूप में सुख-समृद्धि का आह्वान करती है, वहीं रात के अंधियारे में आशाओं के दीप जगमगाते हैं तो निराशा के काले घने बादल स्वमेव छँटते जाते हैं। 

दीपावली जहाँ मन से विकार, कटुता, निराशा, अवसाद और अन्य नकारात्मक प्रवृत्तियों को बाहर निकालती है, वहीँ दीये की रोशनी तमाम कीट-पतंगों और गन्दगी को ख़त्म करती है। 

दीपावली एक सामाजिक त्यौहार है, इसके साथ कइयों की रोजी-रोटी जुडी हुई है। 'ज्योत से ज्योत जलाते चलो' की परम्परा में एक दीया हजारों दीयों को रोशन कर सकता है, पर झालर और बल्ब दूसरे झालरों और बल्बों को रोशन नहीं कर सकते। दीपावली सुख, स्वास्थ्य और सामाजिक सद्भाव का पर्व है। पर पटाखों के शोर-शराबे के बीच फैलता प्रदूषण और हानिकारक कीटों को आमंत्रित करती विदेशी झालरें और इन सब पर व्यय किये गए करोड़ों रूपये इस पवित्र त्यौहार के मूल भाव को ही ख़त्म करने पर तुले हैं। आतिशबाजी और पटाखों की आड़ में खर्च होने वाले करोड़ों रूपये किसी गरीब व्यक्ति को दो वक़्त की रोटी दे सकते हैं। विदेशी आतिशबाजी से दूर रहकर न केवल प्रदूषण से निजात पाया जा सकता है, बल्कि निज बंधुओं के जीवन में खुशियाँ भी भरी जा सकती है।

!! आप सभी को दीपावली पर्व पर सपरिवार शुभकामनाएँ !!


बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

मिट्टी के ही दीये जलाएँ, दीवाली पर अबकी बार


इस दीपावली पर जरा यह भी गौर कीजियेगा


कुम्हारन बैठी सड़क किनारे, लेकर दीये दो-चार।
जाने क्या होगा अबकी, करती मन में विचार।।

याद करके आँख भर आई, पिछला  दीवाली त्योहार।
बिक न पाया आधा समान, चढ गया सर पर उधार।।

सोच रही है अबकी बार, दूँगी सारे कर्ज उतार।
सजा रही है सारे दीये, करीने से बार बार।।

पास से गुजरते लोगों को, देखे कातर निहार।
बीत जाए न अबकी दीवाली, जैसा पिछली बार।।

नम्र निवेदन मित्रोंजनों से, करता हुँ मैँ मनुहार।
मिट्टी के ही दीये जलाएँ, दीवाली पर अबकी बार।।


आपकी सदाशयता किसी गरीब के घर में दीवाली ला  सकती है। 
आप सभी को दीपावली पर्व पर सपरिवार शुभकामनाएँ !!



मंगलवार, 7 अक्तूबर 2014

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने साहित्य में योगदान हेतु कृष्ण कुमार यादव को किया सम्मानित



पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री केशरी नाथ त्रिपाठी ने साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव को सम्मानित किया। उक्त सम्मान श्री यादव को मिर्जापुर में आयोजित एक कार्यक्रम में 5 अक्टूबर, 2014 को प्रदान किया गया। राज्यपाल ने शाल ओढाकर  और सम्मान पत्र देकर श्री यादव को सम्मानित किया। गौरतलब है कि सरकारी सेवा में उच्च पदस्थ अधिकारी होने के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लाॅगिंग के क्षेत्र में भी चर्चित श्री यादव की अब तक कुल 7 पुस्तकें 'अभिलाषा' (काव्य-संग्रह, 2005) 'अभिव्यक्तियों के बहाने' व 'अनुभूतियाँ और विमर्श' (निबंध-संग्रह, 2006 व 2007), India Post : 150 glorious years  (2006), 'क्रांति-यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' (संपादित, 2007), ’जंगल में क्रिकेट’ (बाल-गीत संग्रह-2012) एवं ’16 आने 16 लोग’(निबंध-संग्रह, 2014) प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ (सं0 डाॅ0 दुर्गाचरण मिश्र, 2009, आलोक प्रकाशन, इलाहाबाद) भी प्रकाशित हो चुकी  है। श्री यादव देश-विदेश से प्रकाशित तमाम रिसर्च जनरल, पत्र पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर भी प्रमुखता से प्रकाशित होते रहते हैं।

श्री कृष्ण कुमार यादव को इससे पूर्व उ.प्र. के मुख्यमंत्री द्वारा ’’अवध सम्मान’’, परिकल्पना समूह द्वारा ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लाॅगर दम्पति’’ सम्मान, विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाॅक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘’डाॅ0 अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘‘, छत्तीसगढ़ के राज्यपाल द्वारा ”विज्ञान परिषद शताब्दी सम्मान”, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, वैदिक क्रांति परिषद, देहरादून द्वारा ‘’श्रीमती सरस्वती सिंहजी सम्मान‘’, भारतीय बाल कल्याण संस्थान द्वारा ‘‘प्यारे मोहन स्मृति सम्मान‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ”महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘ सम्मान”, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती रत्न‘‘, अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनन्दन समिति मथुरा द्वारा ‘‘महाकवि शेक्सपियर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान‘‘, भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ द्वारा ’’पं0 बाल कृष्ण पाण्डेय पत्रकारिता सम्मान’’, सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु शताधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हो चुकी हैं।   

उक्त अवसर पर न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय, पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर  के कुलपति प्रो0 पीयूष रंजन अग्रवाल, इग्नू के प्रो चांसलर प्रो0  नागेश्वर राव, बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो0 पंजाब सिंह, भोजपुरी फिल्म अभिनेता कुणाल सिंह, पूर्व शिक्षा मंत्री सुरजीत सिंह डंग सहित तमाम साहित्यकार, शिक्षाविद, संस्कृतिकर्मी व अधिकारीगण मौजूद रहे।









शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014

तेजाब के हमले में घायल एक लड़की के दिल से निकलीं कुछ पंक्तियाँ



चलो, फेंक दिया
सो फेंक दिया....
अब कसूर भी बता दो मेरा

तुम्हारा इजहार था
मेरा इन्कार था
बस इतनी सी बात पर
फूंक दिया तुमने
चेहरा मेरा....

गलती शायद मेरी थी
प्यार तुम्हारा देख न सकी
इतना पाक प्यार था
कि उसको मैं समझ ना सकी....

अब अपनी गलती मानती हूँ
क्या अब तुम ... अपनाओगे मुझको?
क्या अब अपना ... बनाओगे मुझको?

क्या अब ... सहलाओगे मेरे चहरे को?
जिन पर अब फफोले हैं
मेरी आंखों में आंखें डालकर देखोगे?
जो अब अन्दर धस चुकी हैं
जिनकी पलकें सारी जल चुकी हैं
चलाओगे अपनी उंगलियाँ मेरे गालों पर?
जिन पर पड़े छालों से अब पानी निकलता है

हाँ, शायद तुम कर लोगे....
तुम्हारा प्यार तो सच्चा है ना?

अच्छा! एक बात तो बताओ
ये ख्याल 'तेजाब' का कहाँ से आया?
क्या किसी ने तुम्हें बताया?
या जेहन में तुम्हारे खुद ही आया?
अब कैसा महसूस करते हो तुम मुझे जलाकर?
गौरान्वित..???
या पहले से ज्यादा
और भी मर्दाना...???

तुम्हें पता है
सिर्फ मेरा चेहरा जला है
जिस्म अभी पूरा बाकी है

एक सलाह दूँ!
एक तेजाब का तालाब बनवाओ
फिर इसमें मुझसे छलाँग लगवाओ
जब पूरी जल जाऊँगी मैं
फिर शायद तुम्हारा प्यार मुझमें
और गहरा और सच्चा होगा....

एक दुआ है....
अगले जन्म में
मैं तुम्हारी बेटी बनूँ
और मुझे तुम जैसा
आशिक फिर मिले
शायद तुम फिर समझ पाओगे
तुम्हारी इस हरकत से
मुझे और मेरे परिवार को
कितना दर्द सहना पड़ा है।
तुमने मेरा पूरा जीवन
बर्बाद कर दिया है।

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